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भारत दुनिया में इसका सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जरिए कृषि उत्पादक देश

भारत दुनिया में इसका सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जरिए कृषि उत्पादक देश

 मत्स्य पालन में संभावनाएं

केंद्र सरकार ने कहा कि मत्स्य पालन को देश की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख क्षेत्र बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं केंद्रीय मत्स्य पालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों से मछली पालन किए जाने के प्रयासों की सराहना की है हर वर्ष 10 जुलाई को राष्ट्रीय पशुपालन दिवस मनाया जाता है या दिवस अर्थव्यवस्था में मछली पालन करने वाले किसानों के योगदान का सम्मान करने के अवसर माना जाता है इस दिन देश के अलग-अलग हिस्सों हिस्सों के मत्स्य पालक किसान उद्यमी पेशेवर लोग अधिकारी और वैज्ञानिक क्षेत्र से जुड़े मुद्दे के बारे में चर्चा करते हैं इस वर्ष तमिलनाडु में चेन्नई के पास से महाबलीपुरम में मत्स्य पालन के बारे में चर्चा हुई बैठक में जानकारी दी गई कि सरकार ने इस क्षेत्र को सालाना ₹100000 के निर्यात का लक्ष्य रखा है वर्तमान में यह निर्यात ₹64000 है बैठक में यह भी कहा गया कि भारत में समुद्री संसाधन सबसे बड़ा है ऐसे में समझा जा सकता है कि मछली पालन के क्षेत्र में विकास की ओर बहुत संभावनाएं है भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है देश में रोजगार का बड़ा स्रोत होने के साथ-साथ लोगों के लिए पोषक भोजन का भी एक टिकाऊ स्रोत है खास तौर पर देश के हिस्से में रहने वाले आबादी का प्रमुख भोजन रहा है क्षेत्र लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को सीधे या आंशिक रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है देश में होती है और झील नदी तालाब झील जैसे जलाशयों ताजा पानी की मछलियां हाल ही के समय में समुद्री मछलियों की जगह ताजा पानी की मछलियों का उत्पादन तेजी से बढ़ा है वर्ष 2021 22 में 16 पॉइंट 25 मिलियन मीटिंग 22:00 का रिकॉर्ड पिछली मछली उत्पादन हुआ था

मछली पालन की तैयारी

मछली हेतु तालाब की तैयारी बरसात के पूर्व ही कर लेना उपयुक्त रहता है। मछलीपालन सभी प्रकार के छोटे-बड़े मौसमी तथाबारहमासी तालाबों में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसे तालाब जिनमें अन्य जलीय वानस्पतिक फसलें जैसे- सिंघाड़ा, कमलगट्‌टा, मुरार (ढ़से ) आदि ली जाती है, वे भी मत्स्यपालन हेतु सर्वथा उपयुक्त होते हैं। मछलीपालन हेतु तालाब में जो खाद, उर्वरक, अन्य खाद्य पदार्थ इत्यादि डाले जाते हैं उनसे तालाब की मिट्‌टी तथा पानी की उर्वरकता बढ़ती है, परिणामस्वरूप फसल की पैदावार भी बढ़ती है। इन वानस्पतिक फसलों के कचरे जो तालाब के पानी में सड़ गल जाते हैं वह पानी व मिट्‌टी को अधिक उपजाऊ बनाता है जिससे मछली के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आहार प्लैकटान (प्लवक) उत्पन्न होता है। इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं और आपस में पैदावार बढ़ाने मे सहायक होते हैं। धान के खेतों में भी जहां जून जुलाई से अक्टूबर नवंबर तक पर्याप्त पानी भरा रहता है, मछली पालन किया जाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है। धान के खेतों में मछली पालन के लिए एक अलग प्रकार की तैयारी करने की आवश्यकता होती है।

किसान अपने खेत से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत जोते जाते है, खेतों की मेड़ों को यथा समय आवश्यकतानुसार मरम्मत करता है, खरपतवार निकालता है, जमीन को खाद एवं उर्वरक आदि देकर तैयार करता है एवं समय आने पर बीज बोता है। बीज अंकुरण पश्चात्‌ उसकी अच्छी तरह देखभाल करते हुए निंदाई-गुड़ाई करता है, आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन, स्फूर तथा पोटाश खाद का प्रयोग करता है। उचित समय पर पौधों की बीमारियों की रोकथाम हेतु दवाई आदि का प्रयोग करता है। ठीक इसी प्रकार मछली की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए मछली की खेती में भी इन क्रियाकलापों का किया जाना अत्यावश्यक होता है।

तालाब की तैयारी

्मौसमी तालाबों में मांसाहारी तथा अवाछंनीय क्षुद्र प्रजातियों की मछली होने की आशंका नहीं रहती है तथापि बारहमासी तालाबों में ये मछलियां हो सकती है। अतः ऐसे तालाबों में जून माह में तालाब में निम्नतम जलस्तर होने पर बार-बार जाल चलाकर हानिकारक मछलियों व कीड़े मकोड़ों को निकाल देना चाहिए। यदि तालाब में मवेशी आदि पानी नहीं पीते हैं तो उसमें ऐसी मछलियों के मारने के लिए 2000 से 2500 किलोग्राम प्रति हेक्टयर प्रति मीटर की दर से महुआ खली का प्रयोग करना चाहिए। महुआ खली के प्रयोग से पानी में रहने वाले जीव मर जाते हैं। तथा मछलियां भी प्रभावित होकर मरने के बाद पहले ऊपर आती है। यदि इस समय इन्हें निकाल लिया जाये तो खाने तथा बेचने के काम में लाया जा सकता है। महुआ खली के प्रयागे करने पर यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इसके प्रयोग के बाद तालाब को 2 से 3 सप्ताह तक निस्तार हेतु उपयोग में न लाए जावें। महुआ खली डालने के 3 सप्ताह बाद तथा मौसमी तालाबोंमें पानी भरने के पूर्व 250 से 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूना डाला जाता है जिसमें पानी में रहने वाली कीड़े मकोड़े मर जाते हैं। चूना पानी के पी.एच. को नियंत्रित कर क्षारीयता बढ़ाता है तथा पानी स्वच्छ रखता है। चूना डालने के एक सप्ताह बाद तालाब में 10,000 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्रति वर्ष के मान से गोबर की खाद डालना चाहिए। जिन तालाबों में खेतों का पानी अथवा गाठे ान का पानी वर्षा तु मेंबहकर आता है उनमें गोबर खाद की मात्रा कम की जा सकती है क्योंकि इस प्रकार के पानी में वैसे ही काफी मात्रा में खाद उपलब्ध रहता है। तालाब के पानी आवक-जावक द्वार मे जाली लगाने के समुचित व्यवस्था भी अवद्गय ही कर लेना चाहिए।

तालाब में मत्स्यबीज डालने के पहले इस बात की परख कर लेनी चाहिए कि उस तालाब में प्रचुर मात्रा में मछली का प्राकृतिक आहार (प्लैंकटान) उपलब्ध है। तालाब में प्लैंकटान की अच्छी मात्रा करने के उद्देश्य से यह आवश्यक है कि गोबर की खाद के साथ सुपरफास्फेट 300 किलोग्राम तथा यूरिया 180 किलोग्राम प्रतिवर्ष प्रति हेक्टयेर के मान से डाली जाये। अतः साल भर के लिए निर्धारित मात्रा (10000 किलो गोबर खाद, 300 किलो सुपरफास्फेट तथा 180 किलो यूरिया) की 10 मासिक किश्तों में बराबर-बराबर डालना चाहिए। इस प्रकार प्रतिमाह 1000 किला गोबर खाद, 30 किलो सुपर फास्फेट तथा 18 किलो यूरिया का प्रयोग तालाब में करने पर प्रचुर मात्रा में प्लैंकटान की उत्पत्ति होती है।

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