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Neem: करिश्माई ढंग से फायदा करता है नीम

Neem

नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है जो की भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। आयुर्वेद में नीम को बहुत ही उपयोगी पेड़ माना गया है। इसका स्वाद तो कड़वा होता है लेकिन इसके फायदे अनेक और बहुत प्रभावशाली है। १- नीम की छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों और घावों के निवारण में सहायक है।

नीम पर्यावरण के लिए जितना उत्तम है, उतना ही स्वास्थ्य के लिए बेहतर माना जाता है। लोग नीम का उपयोग कई सालों से आयुर्वेदिक औषधि और घरेलू उपाय के तौर पर करते आ रहे हैं। शरीर से जुड़ी कई छोटी-बड़ी समस्याओं के लिए नीम के पत्तों से लेकर इसकी छाल तक इस्तेमाल किया जाता रहा है। वहीं, कई लोग नीम की पत्तियों को खाने में भी शामिल करते हैं। ऐसे में नीम का उपयोग कितना फायदेमंद और कितना नुकसानदायक है, इसकी जानकारी हम स्टाइलक्रेज के इस लेख में दे रहे हैं। यहां आपको नीम के फायदे और नुकसान के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेगी। साथ ही नीम का तेल बनाने की विधि से लेकर औषधि और डाइट के रूप में नीम के उपयोग से जुड़ी हर महत्वपूर्ण जानकारी यहां दी गई है

नीम क्या है? (What is Neem?)

नीम (Neem Ka Ped) भारतीय मूल का एक पूर्ण पतझड़ वृक्ष है जो 15-20 मीटर (लगभग 50-65 फुट) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। कभी-कभी 35-40 मीटर (115-131 फुट) तक भी ऊंचा हो सकता है। इसकी शाखाएं यानी डालियाँ काफी फैली हुई होती हैं। तना सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है।

इसकी छाल कठोर तथा दरारयुक्त होती है और इसका रंग सफेद-धूसर या लाल, भूरा भी हो सकता है। 20-40 सेमी (8 से 16 इंच) तक लंबी पत्तियों की लड़ी होती है जिनमें, 20 से लेकर 31 तक गहरे हरे रंग के पत्ते (neem leaves) होते हैं। इसके फूल सफेद और सुगन्धित होते हैं। इसका फल चिकना तथा अंडाकार होता है और इसे निबौली कहते हैं। फल का छिलका पतला तथा गूदे तथा रेशेदार, सफेद पीले रंग का और स्वाद में कड़वा-मीठा होता है। इसकी गुठली सफेद और कठोर होती है जिसमें एक या कभी-कभी दो से तीन बीज होते हैं।

अनेक भाषाओं में नीम के नाम (Neem Called in Different Languages)

नीम का वानस्पतिक यानी लैटिन भाषा में नाम एजाडिरैक्टा इण्डिका (Azadirachta indica (L.) A. Juss.) तथा Syn- Melia indica (A. Juss.) Brantis है। यह कुल मीलिएसी (Meliaceae) का पौधा है। अंग्रेजी तथा विविध भारतीय भाषाओं में इसके नाम निम्नलिखित हैं।

Neem in –

Hindi – नीम, निम्ब

English – मार्गोसा ट्री (Margosa tree), नीम (Neem)

Sanskrit – निम्ब, पिचुमर्द, पिचुमन्द, तिक्तक, अरिष्ट, हिङ्गुनिर्यास, सर्वतोभद्र, मालक, अर्कपादप, छर्दन, हिजु, काकुल, निम्बक, प्रभद्र, पूकमालक, पीतसारक, गजभद्रक, सुमना, सुभद्र, शुकप्रिय, शीर्षपर्ण, शीत, धमन, अग्निधमन

Garhwali – बेटैन (Betain), निम (Nim)

Oriya – नीमो (Nimo), निम्ब (Nimb)

Urdu – नीम (Neem)

Kannada – निम्ब (Nimb), बेवू (Bevu)

Gujarati – लिम्बा(Limba), कोहुम्बा (Kohumba)

Telugu – वेमू (Vemu), वेपा (Vepa)

Tamil – बेम्मू (Bemmu), वेप्पु (Veppu)

Bengali – निम (Nim), निमगाछ (Nimgachh)

Nepali – नीम (Neem)

Punjabi – निम्ब (Nimb), निप (Nip), बकम (Bakam)

Marathi – बलन्तनिंब (Balantnimba)

Malayalam – वेप्पु (Veppu), निम्बम (Nimbam)

Arabic – अजाडेरिखत (Azadirakht), मरगोसा (Margosa), निम (Nim)

Persian – नीब (Neeb), निब (Nib), आजाद दख्तुल हिंद (Azad dakhtul hind)

नीम के औषधीय गुण और प्रयोग विधि (Medicinal Benefits of Neem in Hindi)

नीम को निम्ब भी कहा जाता है। कई ग्रन्थों में वसन्त-ऋतु (विशेषतः चैत्र मास मतलब 15 मार्च से 15 मई) में नीम के कोमल पत्तों (Neem Ke Patte Ke Fayde In Hindi) के सेवन की विशेष प्रंशसा की गई है। इससे खून साफ होता है तथा पूरे साल बुखार, चेचक आदि भयंकर रोग नहीं होते हैं। विभिन्न रोगों में नीम का प्रयोग (uses of neem in hindi) करने की विधि नीचे दी जा रही हैः-

बालों की समस्याओं में लाभकारी है नीम का प्रयोग (Benefits of Neem for Hair Problems )

नीम के फायदे बालों के लिए बहुत ही लाभकारी है। बाल झड़ने से लेकर बालों के असमय पकने जैसी बालों की समस्याओं में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

नीम के बीजों को भांगरा के रस तथा असन पेड़ की छाल के काढ़े में भिगो कर छाया में सुखाएं। ऐसा कई बार करें। इसके बाद इनका तेल निकालकर नियमानुसार 2-2 बूँद नाक में डालें। इससे असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। इस प्रयोग के दौरान केवल दूध और भात यानी पके हुए चावल ही खाने चाहिए।

नीम के बीज के तेल को नियमपूर्वक 2-2 बूँद नाक में डालने से सफेद बाल काले हो जाते है। इस दौरान केवल गाय का दूध ही भोजन के रूप में लेना होता है।

नीम के पत्ते (Neem Ke Patte) एक भाग तथा बेर पत्ता 1 भाग को अच्छी तरह पीस लें। इसका उबटन या लेप सिर पर लगाकर 1-2 घंटे बाद धो डालें। इससे भी बाल काले, लंबे और घने होते हैं।

नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह उबालकर ठंडा हो जाने दें। इसी पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत होते हैं, बालों का गिरना या झड़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त सिर के कई रोगों में लाभ होता है।

सिर में बालों के बीच छोटी-छोटी फुन्सियां हों, उनसे पीव निकलता हो या केवल खुजली होती हो तो नीम का प्रयोग बेहतर परिणाम देता है। ऐसे अरूंषिका तथा क्षुद्र रोग में सिर तथा बालों को नीम के काढ़े से धोकर रोज नीम का तेल लगाते रहने से तुरंत लाभ होता है।

नीम के बीजों को पीसकर लगाने से या नीम के पत्तों (neem leaves) के काढ़े से सिर धोने से बालों की जुँए और लीखें मर जाती हैं।

सिर का दर्द भगाए नीम का उपयोग (Benefits of Neem for Relief from Headache in )

सूखे नीम के पत्ते, काली मिर्च और चावल को बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक चूर्ण बना लें। सूर्योदय से पहले सिर के जिस ओर दर्द हो, उसी ओर की नाक में इस चूर्ण को एक चुटकी भर नाक में डालें। इससे आधासीसी (अधकपारी) के दर्द यानी माइग्रेन में जल्द लाभ (neem ka upyog) होता है।

नीम तेल को ललाट पर लगाने से सिर का दर्द ठीक होता है

नीम का इस्तेमाल आँखोंं के रोगों के लिए फायदेमंद (Benefits of Neem for Cure Eye Problems )

नीम का प्रयोग आँखोंं के दर्द, खुजली, लाली आदि सभी रोगों में भी काफी लाभकारी है।

जिस आँख में दर्द हो, उसके दूसरी ओर के कान में नीम के कोमल पत्तों का रस गुनगुना कर 2-2 बूँद टपकाएं। दोनों आँखों में दर्द हो तो दोनों कान में टपकाएं। दर्द समाप्त हो जाएगा।

नीम के पत्ते (neem leaves) और लोध्र के बराबर चूर्ण को पोटली में बाँधकर उस पोटली को पानी में डाल दें। इस पानी की 2-3 बूंदें आँखोंं में डालने से आँखोंं की सूजन तथा दर्द आदि रोग दूर होते हैं।

यदि आँखोंं के ऊपर सूजन के साथ ही दर्द हो और अन्दर खुजली होती हो तो नीम के पत्ते तथा सोंठ को पीसकर थोड़ा सेंधा नमक मिला लें। इसे हल्का गर्म कर लें। एक कपड़े की पट्टी पर इसे रखकर आँखोंं पर बाँधें। 2-3 दिन में आँखोंं का यह रोग दूर हो जाता है। इस समय ठंडे पानी एवं ठंढ़ी हवा से आँखोंं को बचाना चाहिए। अच्छा होगा कि यह प्रयोग रात को करें।

आधा किलोग्राम नीम के पत्तों को मिट्टी के दो बर्तनों के बीच में रख कंडो की आग में डाल दें। ठण्डा होने पर अन्दर की राख को 100 मिली नींबू रस में मिलाकर सुखा लें। इसे किसी एयरटाइट (जिसमें हवा ना जा सके) बोतल में भर कर रख लें। इस राख को काजल की तरह आँखोंं में लगाने से आँखोंं की खुजली तथा जलन में लाभ होता है।

50 ग्राम नीम के पतों को पानी के साथ महीन पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पकाएं। जब वह जलकर काली हो जाय तब उसे उसी तेल में मिलाकर उसमें दसवां भाग कपूर तथा दसवां हिस्सा कलमी शोरा मिला लें। इसे खूब घोंटकर कांच की शीशी में भर कर रख लें। इसे रात के समय आँख में काजल की तरह लगाएँ और सुबह त्रिफला के पानी से आँखोंं को धोएं। इससे आँखोंं की खुजली, जलन, लालिमा आदि दूर होती है और आँखोंं की रौशनी बढ़ती (neem ka upyog) है।

नीम की 20 कोंपलें, जस्ता भस्म 20 ग्राम, लौंग 6 नग, छोटी इलायची 6 नग और मिश्री 20 ग्राम को मिला लें। इसे खूब महीन पीस छानकर काजल बना लें। इसे सुबह-शाम सलाई से आँखोंं में लगाने से आँखों के सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं तथा आँखोंं की रौशनी भी बढ़ती है।

दस ग्राम साफ रूई को फैला लें। इस पर नीम के 20 सूखे पत्ते (neem leaves) बिछाकर एक ग्राम कपूर का चूर्ण छिड़क कर रूई को लपेट कर बत्ती बना लें। इस बत्ती को 10 ग्राम गाय के घी में भिगोकर, जला लें। इससे काजल बना लें। इस काजल को रात के समय आँखोंं में लगाने से पानी गिरना, लाली आदि आँखोंं के रोग दूर होते हैं। यह बच्चों के लिए और भी गुणकारी है।

वमनी अथवा सलाक रोग में आँखोंं की पलकें मोटी हो जाती हैं, खुजली होती है, बरौनी झड़ जाती है तथा पलकों के किनारे लाल हो जाते हैं। इस रोग में नीम के पत्तों के रस को पका कर गाढ़ा कर लें। इसे ठंडा करके काजल के रूप में लगाते रहने से लाभ होता है।

नीम की बीज की मींगी का चूर्ण नित्य (1 या 2 सलाई) आँखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है।

नीम के फूलों को छाया में सुखाकर बराबर भाग कलमी शोरा मिलाकर महीन पीसकर कपड़े से छान लें। इसको आँखोंं में काजल की तरह लगाने से आँख की फूली यानी मोतियाबिन्द, धुंध, जाला इत्यादि रोगों में लाभ होता है और आँखोंं की ज्योति बढ़ती (neem ke fayde) है।

रतौंधी में नीम के कच्चे फल का दूध आँखों में काजल की तरह लगाएं। निश्चित लाभ होगा।

नकसीर (नाक से खून बहना) में लाभकारी है नीम का प्रयोग (Uses of Neem to Stop Nasal Bleeding in Hindi)

नीम की पत्तियां और अजवायन को बराबर मात्रा में पीस ले। इसे कनपटियों पर लेप करने से नाक से खून बहना यानी नकसीर बन्द होता है।

कान का बहना रोके नीम का उपयोग (Uses of Neem in Ear Problems Treatment in Hindi)

नीम के फायदे से कानों की बीमारियों को भी ठीक किया जा सकता है।

नीम के पत्ते (neem leaves) के रस में बराबर मात्रा में मधु मिला लें। इसे 2-2 बूँद सुबह-शाम कान में डालने से लाभ होता है। इसे डालने से पहले कान को अच्छी प्रकार साफ कर लें।

कान से पीव निकलती हो तो नीम के तेल में शहद मिला लें। इसमें रूई की बत्ती भिगोकर कान में रखने से लाभ होता है।

नीम तेल 40 मिली तथा 5 ग्राम मोम को आग पर गर्म करें। मोम गल जाने पर उसमें फूलाई हुई फिटकरी का 750 मिग्रा चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर शीशी में रख लें। इस मिश्रण की 3-4 बूँद दिन में दो बार डालने से कान का बहना बन्द (neem ka upyog) होता है।

नीम के पते के 40 मिली रस को 40 मिली तिल के तेल में पकाएं। तेल मात्र शेष रहने पर छान कर 3-4 बूँद कान में डालें। कान का बहना बंद हो जाएगा।

नीम का इस्तेमाल दांतों के रोगों में लाभदायक (Uses of Neem in Treating Dental Disease in Hindi)

अत्यंत प्राचीन काल से ही नीम दातुन यानी दाँतों को साफ करने के लिए नीम की दातुन का प्रयोग होता रहा है। नीम की दातुन करने से दांत संबंधित रोग नहीं होते हैं।

नीम की जड़ की छाल का चूर्ण 50 ग्राम, सोना गेरू 50 ग्राम तथा सेंधा नमक 10 ग्राम, इन तीनों को मिला कर खूब महीन पीस लें। इसे नीम के पते के रस में भिगो कर छाया में सुखा दें। यह एक भावना हुई। ऐसी ही तीन भावनायें देकर और सुखाकर शीशी में रख लें। इस चूर्ण से दाँतों को मंजन करने से दाँतों से खून गिरना, पीव निकलना, मुंह में छाले पड़ना, मुंह से दुर्गन्ध आना, जी का मिचलाना आदि रोग दूर (neem ke fayde) होते हैं।

100 ग्राम नीम की जड़ को कूट कर आधा लीटर पानी में एक चौथाई शेष रहने तक उबालें। इस पानी से कुल्ला करने से दांतों के अनेक रोग दूर होते हैं।

टीबी (क्षय रोग) में लाभकारी है नीम का सेवन (Neem Benefits in TB Disease in Hindi)

नीम के तेल की 4-4 बूँदों को कैप्सूल में भरकर दिन में तीन बार सेवन करने से टी.बी. जैसे रोग में फायदा मिलता है।

दमा रोग में फायदेमंद नीम का प्रयोग (Neem Benefits in Asthma

3-6 बूँद शुद्ध नीम के बीज के तेल को पान में डाल कर खाने से दम फूलना आदि सांसों के रोगों में लाभ होता है।

नीम का सेवन करता है पेट के कीड़ों को खत्म (Neem Benefits in Cure Stomach Bugs )

नीम के फायदे से पेट के रोगों को भी ठीक किया जा सकता है।

नीम की छाल, इन्द्रजौ और वायबिडंग को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 1.5 ग्राम मात्रा में चौथाई ग्राम भुनी हींग मिला लें। इस मिश्रण को मधु में मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।

बैंगन या किसी और सब्जी के साथ नीम के 8-10 पत्तों को छौंक कर खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

नीम के पत्तों का रस निकालकर 5 मिली मात्रा में पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते है।

एसिडिटी में फायदा पहुंचाता है नीम का सेवन (Neem Benefits in Acidity Problem )

नीम की सींक, धनिया, सोंठ और शक्कर सभी 6-6 ग्राम को एक साथ मिला लें। इसका काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से खट्टी डकारें, अपच तथा अत्यधित प्यास लगने की समस्या दूर होते हैं।

पित्त यानी एसिडिटी के कारण होने वाले बुखार में भी यह प्रयोग लाभकारी है।

नीम पंचांग का महीन चूर्ण एक भाग, विधारा चूर्ण 2 भाग तथा सत्तू 10 भाग तीनों को मिलाकर रखें। उचित मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से एसिडिटी में लाभ होता है।

पेट दर्द में नीम का उपयोग लाभदायक (Neem Benefits in Cure Stomach Pain )

40-50 ग्राम नीम की छाल को जौ के साथ कूटकर 400 मिली जल में पकाएं व इसमें 10 ग्राम नमक भी डाल दें। आधा शेष रहने पर गुनगुना कर पिलाने से पेटदर्द में आराम होता है।

और पढ़े: पेटदर्द में अगस्त के फायदे

नीम का इस्तेमाल दस्त में लाभदायक (Benefits of Neem Tree to Stop Dysentery)

आप नीम के फायदे से दस्त पर भी रोक लगा सकते हैं।

नीम की 50 ग्राम अंदर की छाल को मोटा कूट कर 300 मिली पानी में आधा घंटे उबालकर छान लें। इसी छनी हुई छाल को फिर 300 मिली पानी में उबालें। 200 मिली शेष रहने पर छानकर शीशी में भर लें और इसमें पहले छना हुआ पानी भी मिला दें। इस पानी को रोगी को 50-50 मिली दिन में 3 बार पिलाने से दस्त बन्द हो जाता है।

125-250 मिग्रा नीम की अंदर की छाल की राख को 10 मिली दही के साथ दिन में दो बार सेवन करें। इससे आमातिसार यानी आँव वाले दस्त में लाभ (neem ke fayde) होता है।

रोज सुबह 3-4 पकी निबौलियां खाने से खूनी पेचिश ठीक होता है तथा भूख खुल कर लगती है।

10 ग्राम नीम के पते के साथ 1.5 ग्राम कपूर मिलाक लें। इसे पीसकर सेवन करने से हैजा में लाभ होता है।

उलटी में लाभकारी है नीम का सेवन (Benefits of Neem Tree to Stop Vomiting )

नीम की 7 सीकों को 2 बड़ी इलायची और 5 काली मिर्च के साथ महीन पीस लें। इसे 250 मिली पानी के साथ मिलाकर पीने से उलटी बन्द होती है।

5-10 मिग्रा नीम की छाल के रस में मधु मिलाकर पिलाने से उलटी तथा अरुचि आदि में लाभ होता है।

20 ग्राम नीम के पत्तों को 100 मिली पानी में पीसकर, छान लें। इसे 50 मिली मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से उलटी तथा अरुचि में लाभ होता है।

8-10 नीम के कोमल पत्तों को घी में भूनकर खाने से भोजन से होने वाली अरुचि दूर होती है।

बवासीर में फायदेमंद नीम का प्रयोग (Benefits of Neem Tree in Piles Treatment)

50 मिली नीम तेल, 3 ग्राम कच्ची फिटकरी तथा 3 ग्राम सुहागा को महीन पीसकर मिला दें। शौच-क्रिया में धोने के बाद इस मिश्रण को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाएं। इससे कुछ ही दिनों में बवासीर ठीक होता है।

नीम के बीजों तथा बकायन के बीजों की सूखी गिरी, छोटी हरड़, शुद्ध रसौत 50-50 ग्राम तथा घी में भूनी हींग 5 ग्राम लें। इन सबका महीन चूर्ण बना लें। इसमें 50 ग्राम बीज निकाले हुए मुनक्का को पीसकर 500 मिग्रा की गोलियां बना लें। 1-2 गोली को दिन में 2 बार बकरी के दूध या ताजे पानी के साथ सेवन करने से सब प्रकार के बवासीर में लाभ होता है। खून गिरना बंद होता है और दर्द भी समाप्त (neem ke fayde) होता है।

छिलके सहित कूटी हुई सूखी निबौरी के 1-2 ग्राम महीन चूर्ण को सुबह खाली पेट सेवन करने से बवासीर के रोगी को बहुत लाभ होता है। इसे रात के रखे पानी के साथ सेवन करना है। इसके सेवन के दौरान घी का प्रयोग अवश्य करें, अन्यथा आँखोंं की रौशनी प्रभावित हो सकती है।

नीम के बीज की गिरी, एलुआ और रसौत को बराबर मात्रा में मिलाकर खरल कर गोलियां बना लें। सुबह एक गोली छाछ के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

नीम के बीजों की गिरी 100 ग्राम और जड़ की छाल 200 ग्राम को पीस लें। इसकी 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर 4-4 गोली को दिन में 4 बार सात दिन तक खिलाएं। इसके साथ ही नीम के काढ़े से मस्सों को धोएं या पत्तों (uses of neem leaves) को पीस कर मस्सों पर बाँधें। बवासीर में निश्चित लाभ होगा।

100 ग्राम सूखी निबौली को 50 मिली तिल के तेल में तलकर पीस लें। बाकी बचे तेल में 6 ग्राम मोम, 1 ग्राम फूला हुआ नीला थोथा और इस चूर्ण को मिलाकर मलहम बना लें। इसे दिन में 2-3 बार बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से खत्म हो जाते हैं।

नीम के बीज की गिरी 20 ग्राम, फिटकरी का फूला 2 ग्राम और सोना गेरू 3 ग्राम को पीस लें। इससे मलहम जैसा बना लें। यदि मलहम जैसा न बने तो उसमें थोड़ा घी या मक्खन अथवा गिरी का तेल मिला कर घोटना चाहिए। इसे लगाने से मस्सों का दर्द तत्काल दूर होता है। खून बहना बन्द होता है एवं मस्से मुरझा जाते हैं। इस प्रयोग में कपूर मिला कर एरंड के तेल में भी मलहम बनाया जा सकता है।

50 ग्राम कपूर तथा 50 ग्राम नीम के बीज के गिरी का तेल को मिला लें। इसे थोड़ी मात्रा में मस्सों पर लगाते रहने से लाभ होता है।

पीलिया में लाभ पहुंचाए नीम का सेवन (Benefits of Neem Tree in Fighting with Jaundice)

नीम पंचांग के एक ग्राम महीन चूर्ण में 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिला लें। इसका सेवन करने से शरीर में खून की कमी को दूर होती है और पीलिया ठीक होता है। यदि घी और शहद किसी को अच्छा न लगता हो तो एक ग्राम पंचांग चूर्ण को गाय के पेशाब या पानी या गाय के दूध के साथ भी ले सकते हैं।

नीम की सींक 6 ग्राम और सफेद पुनर्नवा की जड़ 6 ग्राम को पानी में पीस कर छान लें। कुछ दिनों तक पिलाते रहने से पीलिया में लाभ होता है।

नीम का पत्ता, गिलोय का पत्ता, गूमा (द्रोणपुष्पी) का पत्ता और छोटी हरड़ (सभी 6-6 ग्राम) लेकर सभी को कूट लें। इसे 200 मिली पानी में पकाएं। 50 मिली शेष रहने पर छान लें। इसे 10 ग्राम गुड़ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया में विशेष लाभ होता है। इस काढ़े के सेवन से पहले 200 मिग्रा शिलाजीत को 6 ग्राम मधु के साथ चाट लें।

पित्त की नली में रुकावट होने से पीलिया रोग हो जाए तो 10-20 मिली नीम के पते के रस में, तीन ग्राम सोंठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद मिला लें। इसे तीन दिन सुबह खाली पेट पीने से लाभ होता है। दवा लेते समय घी, तेल, चीनी व गुड़ का प्रयोग नहीं करें। खाने में दही-भात लें।

सुखे हुए नीम के पत्ते (uses of neem leaves) , नीम के जड़ की छाल, फूल और फल को बराबर मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण को एक ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार घी व शहद में मिलाकर अथवा गाय के पेशाब या गाय के दूध या पानी के साथ सेवन करें। पीलिया रोग ठीक होगा।

10 मिली नीम के पत्ते के रस में 10 मिली अडूसा के पत्ते का रस व 10 ग्राम मधु मिला लें। इसे रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

20 मिली नीम के पत्ते के रस में थोड़ी चीनी मिलाकर, थोड़ा गरम कर सेवन करें। दिन में एक बार तीन दिन तक सेवन करने से भी लाभ हो जाता है।

नीम के 5-6 कोमल पत्तों को पीसकर, शहद मिलाकर सेवन करने से भी पीलिया, पेशाब संबंधित रोग तथा पेट के रोगों में भी लाभ होता है।

10 मिली नीम के पत्ते के रस में 10 ग्राम मधु मिलाकर 5-6 दिन पीने से पीलिया में बहुत लाभ होता है।

डायबिटीज में फायदेमंद नीम का उपयोग (Neem Leaf Benefits in Gonorrhea )

प्रमेह रोग को ही डायबिटीज भी कहते हैं। नीम के पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर थोड़े से गाय के घी में अच्छी तरह तल लें। टिकिया जल जाने पर, घी को छानकर रोटी के साथ सेवन करने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।

10 मिली नीम के पत्ते के रस में मधु मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें। प्रमेह रोग मतलब डायबिटीज में फायदा होता है।

20 मिली नीम के पत्ते के रस में एक ग्राम नीला थोथा अच्छे से मिलाकर सुखा लें। इसे कौड़ियों में रखकर जला कर भस्म करें। 250 मिग्रा भस्म को गाय के दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करें। प्रमेह यानी डायिबटीज में लाभ होगा।

40 ग्राम नीम के छाल को मोटा-मोटा कूट कर 2.5 लीटर पानी डाल लें। इसे मिट्टी के बरतन में पकाएं। 200 मिली शेष रहने पर छान कर दोबारा पकाएं और 20 या 25 ग्राम कलमी शोरा चूर्ण चुटकी से डालते जायें और नीम की लकड़ी से हिलाते जाएं। सूख जाने पर पीस-छानकर रख लें। 250 मिग्रा की मात्रा रोजाना गाय के दूध की लस्सी के साथ सेवन कराने से डायिबटीज में जल्द लाभ हो जाता है।

पथरी की बीमारी में नीम के पत्तों का प्रयोग असरदार (Neem Leaf Benefits in Cure Kidney Stone

नीम के पत्तों की 500 मिग्रा राख को कुछ दिनों तक लगातार जल के साथ सेवन करें। इसे दिन में 3 बार खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है।

दो ग्राम नीम के पत्तों को 50 से 100 मिली तक पानी में पीस-छानकर डेढ़ मास तक पिलाते रहने से पथरी टूटकर निकल जाती है। इसे सुबह, दोपहर तथा शाम लेना होता है।

नीम के उपयोग से सुखते हैं स्तनों के घाव (Neem Uses in Healing Nipple Wounds)

50 मिली सरसों के तेल में 25 ग्राम नीम के पत्ते को पकाकर घोट लें। नीम के पत्ते के काढ़े से घाव को धोकर पोछ लें। उसके वाद राख मिला तेल लगा दें तथा कुछ सूखी राख ऊपर से लगाकर पट्टी बाँध दें। 2-3 दिन में काफी आराम हो जाता है। इसके बाद रोज नीम के काढ़े से धोकर नीम तेल लगाते रहें। घाव तुरंत भरकर सूख जाएगा।

योनि का दर्द मिटाए नीम का उपयोग (Neem Benefits in Relief from Vaginal Pain in Hindi)

कई बार स्त्रियों को योनि में दर्द हो जाता है। नीम की गिरी को नीम के पत्ते के रस में पीसकर गोलियां बना लें। गोली को कपड़े के भीतर रखकर सिल लें (इसमें एक डोरा लटकता रहे)। रोज एक गोली योनिमार्ग में रखने से दर्द में आराम होता है।

नीम के बीजों की गिरी, एरंड के बीजों की गिरी तथा नीम के पत्ते का रस को बराबर मात्रा में मिला लें। इसकी बत्ती बनाकर योनि में डालने से योनि का दर्द ठीक होता है।

नीम के छाल को अनेक बार पानी में धोकर, उस पानी में रूई को भिगोकर रोज योनि में रखें। धोने से बची हुई छाल को सुखाकर जलाकर उसका धुँआ योनि के मुंह पर दें। इसके साथ ही नीम के पानी से बार-बार योनि को धोएं। इन प्रयोगों से ढीली योनि सख्त हो जाती है।

मासिक धर्म विकार में लाभदायक नीम का सेवन (Neem Uses in Cure Menstrual Problems in Hindi)

मोटी कूटी हुई नीम की छाल 20 ग्राम, गाजर के बीज 6 ग्राम, ढाक के बीज 6 ग्राम, काले तिल और पुराना गुड़ 20-20 ग्राम लें। इन्हें मिट्टी के बर्तन में 300 मिली पानी के साथ पकाएं। 100 मिली शेष रहने पर छानकर सात दिन तक पिलाएं। मासिक विकारों में लाभ होता है। इसे गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए।

नीम के उपयोगी हिस्से (Beneficial Parts of Neem Tree)

नीम के इन भागों का औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैः-

नीम के तने

जड़ की छाल

लकड़ी

पत्ते (Neem Ke Patte)

फूल

फल

बीज

नीम की तेल

नीम के सेवन की मात्रा एवं सेवन विधि (Uses & Doses of Neem)

चूर्ण – 1-3 ग्राम

काढ़ा – 50-100 मिली

अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार नीम का प्रयोग करें।

नीम के नुकसान तथा सावधानियां (Side Effects & Precautions of Neem)

नीम के नुकसान (neem ke nuksan) भी हो सकते हैंः-

नीम कामशक्ति को घटाता है। इसलिए जिनको ऐसी परेशानी हो उन्हें नीम का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

सुबह-सवेरे उठकर मद्यपान (शराब का सेवन) करने वालों को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

नीम के खाने से कोई परेशानी हो रही हो तो सेंधा नमक, घी और गाय का दूध इसके दुष्प्रभाव को दूर करते हैं।

नीम कहाँ पाया या उगाया जाता है? (Where is Neem Tree Found or Grown?)

भारत में नीम (neem ka ped) की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। इसके बाद क्रमशः तमिलनाडू, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान आदि प्रदेशों में पाया जाता है| यह मुख्यतः मैदानी भागों, सड़कों के किनारे, खेतों की मेड़ों पर, गांवों के आसपास एव खाली जमीन पर प्राकृतिक रूप से ही पैदा हो जाता है। अब सम्पूर्ण भारत में उगाया भी जाने लगा है|

नीम मूलतः भारतवर्ष यानी वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश व म्यांमार का वृक्ष है| इसके बहुउपयोगी गुणों के कारण दक्षिण-पूर्वी एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, मध्य अमेरिका के राज्यों, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड आदि सहित कैरिबियन देशों में भी इसे उगाया जाने लगा है।

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